Monday, August 20, 2018

"उच्छ्वास"

प्रिय तुम बहुत उदास ही होगी।
कुछ तो करके याद हमारी,                                  फिर भी बहुत निराश ही होगी।।                            प्रिय तुम बहुत...… ...... ......
तुम वसंत की लाली में थी,मैं पतझड़ की डाली में था।
अस्मिता मिट गई मेरी छड़ में, तुम तो पुष्पित हुई चमन में।                                                    
जयमाल बनी जब तेरे तन की,धधकी अनल हमारे मन की।
तुमको सप्तपदी चल करके,हमको तन मन से जल करके।        महामिलन की आस ही होगी।।
प्रिय तुम बहुत..... ..... .....
मेरी याद तुम्हारे दिल में, आती होगी सावन में।
नयन नीर नित बहते होंगे,उर के बीच पनारों में।।
जब काजल की काली रेखाएँ, बहती होंगी गालों पर,
भृमर सोचता मधु की बूंदें, बह आई हैं डालों पर।।
फिर भी मेरे महामिलन की,अब भी दिल में आस ही होगी।।     प्रिय तुम बहुत... ... ....
अम्बर कांच तुम्हारे दिल का,शशि बिंब तुम्हारा लगता है
तिल चिंह गुलाबी गालों का,कलंक सुधाकर बनता है।।
जलधर बीच चपलता से,चपला जब मुस्काती होगी,
खर अनंग का जब भी तेरे,उर में घात लगाती होगी।
तब तब मेरे पुनर्मिलन की,दिल में तेरे आस ही होगी।।
प्रिय तुम बहुत... .... ....
तुमको ढूढ़ा दिल ने दिल में, यादों की उस महफिल में।
पनघट का वह तट भी देखा, जलती बुझती जीवन रेखा।
नयन नीर के कोमल कड़ में,जीवन के हर स्वर्णिम छड़ में।।
तुम मिली न मनु की इड़ा में,संगीत सुधा की विणा में।
महामिलन की इस वेला में,कुछ तो तुमको आस ही होगी।।
प्रिय तुम बहुत उदास ही होगी,
   कुछ तो करके याद हमारी।
    फिर भी बहुत निराश ही होगी।
     प्रिय तुम बहुत उदास ही होगी।।
                                              "नागेंद्र"

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