Saturday, August 18, 2018

केरला की विभीषिका

      केरल राज्य में जो भयंकर जलप्लावन की स्थिति पैदा हुई है उसके लिए इस समय सबसे बड़ी प्राथमिकता तो यही है, कि वहाँ के लोगों को हम यह महसूस कराएँ की उनके इस संकट की घड़ी में पूरा देश ही नहीं पूरा संसार उनके साथ खड़ा है।यह केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि सम्पूर्ण समाज की जिम्मेदारी है कि हम अपनी सामर्थ्य के अनुसार मदद के लिए आगे आएं,और हम आते भी हैं।समय समय पर हमने दिखाया भी है।
          लेकिन इस आपदा के समय समाप्त होने के पश्चात यह विचार करने का समय अब आ गया है कि इस परिस्थिति के लिए क्या केवल प्रकृति ही जिम्मेदार है कि कहीं न कहीं हम हैं।हम आधुनिकता की दौड़ में इतना आगे जाने का प्रयास कर रहे हैं कि प्रकृति भी हमसे रुष्ट हो गई है।
        आज से सैकड़ों साल पहले अंग्रेजों ने जंगल काट कर जो चाय के बागान विकसित करने का काम प्रारंभ किया था, वह अनवरत चलता रहा और प्रकृति से  हम क्रूर मजाक करते रहे।आज प्रकृति हमसे उसी का बदला ले रही है।
       केरल में सर्वाधिक नुकसान भूस्खलन से हुआ है।आखिर इतने बड़े पैमाने पर भूस्खलन क्यों हुआ यह सोचने की बात है?
            अब भी समय है इस विभीषिका जैसी परिस्थिति बार बार न आए इसके लिए हम सतर्क हो जाए नहीं तो सार का सारा विकास धरा का धरा रह जाएगा नष्ट होने में पल भी नहीं लगेगा।

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